ग्राउंड रिपोर्ट: प्रयागराज में नहरों का जाल, फिर भी सिंचाई के लिए किसान बेहाल
आदर्श सहारा टाइम्स
शैलेश कुमार कुशवाहा
मेजा, प्रयागराज। देश की आजादी के बाद अनाज का उत्पादन बढ़ाने और किसानों को सशक्त करने के लिए सिंचाई के संसाधनों को मजबूत करने का महती कार्य किया गया था। कहा गया कि अन्नदाता समृद्धशाली रहेगा तो लोगों को अन्न की समस्या से जूझना नहीं पड़ेगा। इसी उद्देश्य से नहरों का जाल बिछाकर सिंचाई की व्यवस्था को मजबूत करने की कोशिश की गई। उत्तर प्रदेश में किसानों के दर्द को करीब से देख कर नहरों का जाल बिछाने का काम किया गया था। बिछाए गए नहरों के जाल के जरिए आज भी किसानों के खेतों तक सिंचाई के लिए पानी मुहैया होता है। यह अलग बात है कि नहरों के समुचित रख-रखाव और सफाई के अभाव में किसानों को समय पर पानी नहीं मिल पाता है।
इस समय जिले के किसान गेहूं , जौ, सरसों, अलसी और भी अन्य सब्जियों की खेती की तैयारी कर रहे हैं। ताकि समय से बुवाई हो सके। और जिनकी बुवाई हो गई है उनकी सिंचाई हो सके।जिन किसानों के पास सिंचाई के अपने निजी संसाधन हैं। वह तो खेती के तैयारी में जुट गए हैं, लेकिन जिन किसानों की निर्भरता नहरों और बांधों के पानी पर है। वह परेशान दिख रहे हैं। सबसे ज्यादा परेशानी पहाड़ी क्षेत्र के किसानों को है। उन्हें खेती करने के लिए पानी की जरूरत है ।लेकिन नहरों में पानी की बजाय धूल नजर आ रही है।
परेशान किसान जिले की बदहाल नहरों की व्यथा बताते हुए कहते हैं कि “किसान अन्नदाता होने के साथ-साथ बेचारा भी बना हुआ है। कभी मौसम, तो कभी सूखे की मार सहता है। किसान कब खुशहाल होगा यह एक यक्ष प्रश्न बना हुआ है।”
नहरों में पानी नहीं
नहरों की मरम्मत नहीं होने से संकट
क्षेत्र में पिछले कई साल से बांध से निकली नहरों में सीपेज व मरम्मत का कार्य न होने से टेल तक पानी पहुंच पाना कठिन होने लगा है। जिसके चलते तकरीबन सैकड़ों गांवों के किसान पानी के अभाव में खेतों की सिंचाई नहीं कर पा रहे हैं। खेती की तैयारी में जुटे किसानों को बरसात के पानी से आस लगानी पड़ रही है। बता दें कि
सिंचाई व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए किसानों ने समय-समय पर मिर्जापुर नहर प्रखंड के अधिकारियों के अलावा इलाकाई जन-प्रतिनिधियों तक से गुहार लगाई है। बावजूद इसके समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है।
सिंचाई की समस्या से जूझ रहे किसानों में रोष है। उनका कहना है कि चुनाव के दौरान सांसद, विधायक नहरों में टेल तक पानी पहुंचाने की बात तो करते हैं, लेकिन चुनाव बीतने के बाद वे अपना वादा भूल जाते हैं। अनशन-प्रदर्शन के बावजूद कोई ध्यान नहीं दे रहा है। किसानों का कहना है कि सीपेज की समस्या दूर करने तथा टेल तक पानी पहुंचाने की मांग पर संबंधित अधिकारी हमेशा बजट के अभाव की बात कहते हैं।
मरम्मत के अभाव में पहाड़ी ब्लॉक क्षेत्र से गुजरी नहरें समतल हो गई हैं। किसान कहते हैं कि “नहर के रखरखाव के अभाव में खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है। नहरों में समय से न तो पानी छोड़ा जाता है और ना ही नहरों की सफाई पर ध्यान दिया जाता है।”
नहरों पर नहीं, मॉनसून पर निर्भर है सिंचाई
मेजा , कोरांव के अति पिछड़े पहाड़ी इलाकों के किसान धान की नर्सरी डालने के लिए भी मॉनसून की प्रतीक्षा करते हैं। नहर व माइनर क्षतिग्रस्त होने के कारण टेल तक पानी नहीं पहुंच पाता है।
नहर की सफाई के नाम पर लाखों का खेल
खेतों की सिंचाई के संसाधनों में नहरों से सिंचाई को सबसे उपयुक्त साधन माना गया है। नदियों में बांध बनाकर नहरें निकाली जाती हैं, और फसली सीजन में बांध से नहरों में पानी छोड़कर किसानों के खेतों तक पहुंचाया जाता है। मिर्जापुर जिले में गंगा नदी के सखौरा पंप कैनाल, नारायनपुर पंप कैनाल के अलावा सिरसी, खजुरी, अदवा, बेलन बरौंधा और मेजा बांध के जरिए नहरों के रास्ते किसानों के खेतों में पानी पहुंचाने की व्यवस्था की गई है।
लेकिन तीन-चार दशक पूर्व बने नहरों-माइनरों की मरम्मत व रखरखाव के नाम पर सिर्फ बजट पास होता आया है। ठोस काम नहीं होने से कई दशकों पूर्व बने नहरों की हालत जर्जर हो चुकी है। नहरों की साफ सफाई के नाम पर घास-फूस, पेड़-पौधे छीलकर लाखों का वारा-न्यारा कर लिया जाता है, लेकिन टेल तक पानी पहुंचेगा कि नहीं इसे सोचने-समझने की जरूरत नहीं समझी जाती। कुछ ऐसा ही हाल बांध-बंधों का भी है
जो सीपेज की समस्या से जूझ रहे हैं। जो पानी किसानों के खेतों में बहना चाहिए वह सीपेज होने के चलते बेकार में बह जाता है।
नहर किनारे के किसान बताते हैं कि टेल तक पानी नहीं पहुंचता है। कहने के लिए नहर बनाई गई है, लेकिन किसानों के पानी के लिए नहीं, सिर्फ अधिकारियों की जेब भरने के लिए। और तो और जो झाल टूटी हैं या माइनर टूट फूट गये हैं उसको बनवाने के लिए सिंचाई विभाग के पास धन नहीं है। नहर की सिल्ट सफाई के लिए धन है ।लेकिन सिल्ट सफाई के नाम पर सिर्फ घास कटवाई जाती है। जो मौके पर जाकर देखा जा सकता है।”
फसलों की बुवाई शुरू होने से ऐन पहले नहरों की सफाई और मरम्मत का कार्य प्रारंभ कराया जाता है ।जो हास्यास्पद ही नहीं बल्कि जांच का विषय है, लेकिन दुर्भाग्य है कि इस पर जिम्मेदार लोगों का ध्यान नहीं जाता है। या वह जानकर भी नजर अंदाज करते हैं। इन दिनों जिले के कई स्थानों पर नहरों में मरम्मत का कार्य चल रहा है। जिसे देखकर मन में एक ख्याल आता है कि आखिरकार यह कार्य बरसात से कई महीने पहले क्यों नहीं कराये जाते हैं।
सिंचाई विभाग मुलाजिम नाम ना छापे जाने की शर्त पर आदर्श सहारा टाइम्स को बताते हैं कि इसके पीछे भी गहरा रहस्य छुपा हुआ है, जो बरसात के पानी के साथ बह जाता है। इससे आम के आम गुठलियों के दाम भी निकल आते हैं। यानी काम भी हो जाता है दाम भी मिल जाता है। दूसरे यदि कभी किसी ने जांच करने का साहस किया भी तो बरसात बहाना बन जाता है और बचाव के रूप में ढाल भी।
(मेजा प्रयागराज से शैलेश कुमार कुशवाहा की ग्राउंड रिपोर्ट।)