सुदामा चरित्र सुन कर भाव विभोर हुए श्रोता गण

सुदामा चरित्र सुन कर भाव विभोर हुए श्रोता गण

 

आदर्श सहारा टाइम्स

कोरांव (प्रयागराज)।  सप्त दिवसीय श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के गरिमा पूर्ण समापन समारोह में आज क्षेत्र के विशिष्ट लोगों का आगमन हुआ।सात दिनों तक इस ज्ञान गंगा में स्नान करके गद्गद हो गये क्षेत्र वासी।पं संतोष तिवारी धर्मगुरु के आवास पर चल रही कथा में आज मानस महारथी पं निर्मल कुमार शुक्ल ने कृष्ण सुदामा मिलन की भाव पूर्ण व्याख्या करते हुए कहा कि कृष्ण ने सुदामा के चरण धोकर अपने बड़प्पन में चार चांद लगा दिया। कहां दरिद्रता की चक्की में पिसता हुआ निरीह सुदामा कहां त्रिलोकी नाथ जिनके द्वार पर बड़े बड़े चक्रवर्ती सम्राट और इंद्रादि देवता कतार खड़े रहते हैं किंतु भगवान का दर्शन सुलभ नहीं हो पाता वही भगवान द्वारपालों से सुदामा नाम सुनते ही विक्षिप्त जैसे दौड़ पड़ते हैं। सुदामा को बाहों में भर लेते हैं और सिंघासन पर बैठाकर रानियों के साथ चरण पखारते हैं। सुदामा का स्वागत करते हुए भगवान अपना समस्त ऐश्वर्य भूल जाते हैं ऐसा लगता है जैसे किसी दरिद्र को कुबेर का वैभव मिल गया हो।दो मुट्ठी चावल के बहाने भगवान ने कुबेर जैसा वैभव लुटा दिया सुदामा को।जे गरीब पर हित करें ते रहीम बड लोग। कहां सुदामा बापुरो कृष्ण मिताई जोग।। रामायण में भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाकर और भागवत में श्री कृष्ण ने सुदामा के चरण पखार कर अपने मानो अपने ईश्वरत्व को लगा दिया।इसी के साथ भगवान के विभिन्न विवाहों तथा संतान का वर्णन करते हुए महराज श्री ने सुभद्रा हरण की मनोहारी कथा का वर्णन किया।अंत में दत्तात्रेय चरित्र नौ योगेश्वरों की कथा तथा परीक्षित मोक्ष सुनाते हुए कथा का समापन किया आचार्य श्री ने। यजमान संतोष तिवारी तथा समस्त तिवारी परिवार ने ग्रंथ पूजन किया। श्रोताओं ने भी व्यास पीठ का पूजन किया। संतोष तिवारी ने कथा व्यास और समस्त श्रोताओं का आभार व्यक्त किया। महराज श्री के शिष्य और भागवत रामायण के शशक्त व्याख्या कार पं संदीप उपाध्याय का भी स्वागत किया यजमान ने। अयोध्या से आये हुए कर्मकांड के अधिकारी विद्वान शैलेश पांडेय ने संस्कृत संहिता पाठ के माध्यम से समस्त परिसर को आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण कर दिया। यजमान के मार्गदर्शक योगेश्वर द्विवेदी महेंद्र मिश्र शुशील कुमार पाण्डेय शिव गोपाल तिवारी राम गोपाल तिवारी ने सभी श्रोताओं का स्वागत किया।

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