सीओ कार्यालय चायल में वर्षों से जमे पुलिसकर्मियों पर उठे सवाल
मठाधीश बनकर बैठे कुछ पुलिसकर्मियों की कार्यशैली बनी विभाग के लिए चुनौती
ट्रांसफर लिस्ट में बार-बार नाम छूटने पर उठे राजनीतिक संरक्षण के सवाल
आदर्श सहारा टाइम्स
कौशांबी। जिले के चायल क्षेत्र स्थित सीओ कार्यालय में वर्षों से जमे कुछ पुलिसकर्मी अब कानून के रक्षक नहीं, बल्कि सत्ता और रसूख के संरक्षक के रूप में पहचाने जाने लगे हैं। विभागीय नियमों को दरकिनार कर लंबे समय से एक ही स्थान पर जमे ये पुलिसकर्मी न केवल कानून व्यवस्था की मर्यादा को तार-तार कर रहे हैं, बल्कि इनकी कार्यशैली ने आम जनता में गहरी नाराज़गी और असुरक्षा की भावना पैदा कर दी है।
जानकारी के अनुसार, चायल सीओ कार्यालय में कुछ पुलिसकर्मी ऐसे हैं, जो वर्षों से एक ही कुर्सी पर जमे हुए हैं। इनके खिलाफ ना तो कोई विभागीय कार्यवाही होती है, और ना ही ट्रांसफर लिस्ट में इनका नाम शामिल किया जाता है। ताज्जुब की बात यह है कि जब जिले भर के थानों, चौकियों और पुलिस चौकियों में सामान्य सिपाहियों से लेकर दरोगाओं तक का समय-समय पर स्थानांतरण होता है, तो आखिर क्यों सीओ कार्यालय के यह “विशेष कृपापात्र” पुलिसकर्मी हर बार बच निकलते हैं स्थानीय लोगों का कहना है कि इन पुलिसकर्मियों की कार्यालय के भीतर और बाहर संदिग्ध लोगों के साथ बैठकी आम बात हो चुकी है। विभागीय गोपनीय जानकारी तक अपराधियों को लीक कर देते हैं, जिससे कानून व्यवस्था कमजोर पड़ती जा रही है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या इन पुलिसकर्मियों को किसी ‘अदृश्य ताकत’ का संरक्षण प्राप्त है? या फिर इनके पीछे कोई ऐसा राजनीतिक और प्रशासनिक गठजोड़ है, जो इनकी तैनाती को छूने तक नहीं देता?
विभागीय मानकों के अनुसार, एक स्थान पर तीन वर्ष से अधिक समय तक तैनाती को नियम विरुद्ध माना जाता है, लेकिन चायल सीओ कार्यालय में वर्षों से जमे इन पुलिसकर्मियों पर यह नियम शायद लागू नहीं होता। इनकी कार्यशैली में पारदर्शिता की कमी और कथित मिलीभगत ने सीओ कार्यालय की छवि को बट्टा लगाया है। कुछ लोगों का यहां तक कहना है कि ये पुलिसकर्मी अब खुद को नियमों और कानून से ऊपर समझने लगे हैं।
हाल ही में जारी हुई ट्रांसफर लिस्ट में फिर से इन रसूखदार पुलिसकर्मियों का नाम नदारद रहना, कई गंभीर सवालों को जन्म देता है। क्या वाकई में इनका तबादला रोकने के पीछे किसी बड़े राजनीतिक संरक्षण की भूमिका है? क्या ये विभागीय तंत्र की पकड़ से बाहर हो चुके हैं इस पूरे मामले पर पुलिस विभाग के उच्चाधिकारियों को गंभीरता से संज्ञान लेते हुए पारदर्शी जांच करानी चाहिए, ताकि नियम और निष्पक्षता की भावना को पुनः बहाल किया जा सके। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले समय में इससे न केवल विभागीय अनुशासन प्रभावित होगा, बल्कि आम जनता का पुलिस व्यवस्था से भरोसा भी उठ जाएगा।
